जिस धरती की रज का करते,
तिलक देवता आ आकर।
देवभूमि कहलायी जाती,
पावन परम् दुग्धशाला॥
देव भूमि पर स्वाहा स्वाहा-
यज्ञानल बोला करती।
हाय-हाय की करूण कहानी-
कहने आयी वधशाला॥४॥
मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
जिस धरती की रज का करते,
तिलक देवता आ आकर।
देवभूमि कहलायी जाती,
पावन परम् दुग्धशाला॥
देव भूमि पर स्वाहा स्वाहा-
यज्ञानल बोला करती।
हाय-हाय की करूण कहानी-
कहने आयी वधशाला॥४॥
थिरक थिरक नूपुर पग, बाजें,
साजें मेघ, गगन, घन गाजें,
परिरम्भित हो भू पर राजेंयह मृदु स्वप्न रहा॥
धिकधिक ताक धिनाधिक, धिनधिन,
होता सा मन में नित नर्तन,सरगम,
सप्त सुरी-अभिनन्दन,करती रहे अहा॥
रे मन ! क्यों है बहक रहा ?
कौन पद्म खिल गया ? सुरभि ले,
इतना महक रहा॥
कलश भरे मद, चषक युगल हों,
हम तुम खोये रस-विह्नल हों,
कैसे मधुर मधुर वे पल हों ?
बहती अनिल अहा॥
सुधा सरोवर में मराल ज्यों,
तैरे निशिदिन, दीपथाल त्यौं,
रहें न किंचित भी उदास यों,
हों उन्मत्त महा॥
वीणे ! वक्षस्थल पर सोजा,
दूखे मन ! किंचित सा रो जा,
आ, तू भी कुछ ऐसा हो जा,
जैसा है संसार.........॥
कहीं मिलेगा आश्रय अपना,
वहीं जगेगा, सोया सपना,
यदि कोई, जो होगा अपना,
कर लेगा मनुहारबज रहे हैं, वीणा के तार॥