मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
थिरक थिरक नूपुर पग, बाजें,
साजें मेघ, गगन, घन गाजें,
परिरम्भित हो भू पर राजेंयह मृदु स्वप्न रहा॥
धिकधिक ताक धिनाधिक, धिनधिन,
होता सा मन में नित नर्तन,सरगम,
सप्त सुरी-अभिनन्दन,करती रहे अहा॥
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