Sunday, March 8, 2009

रे मन ! क्यों है बहक रहा ?


रे मन ! क्यों है बहक रहा ?

कौन पद्म खिल गया ? सुरभि ले,

इतना महक रहा॥

कलश भरे मद, चषक युगल हों,

हम तुम खोये रस-विह्नल हों,

कैसे मधुर मधुर वे पल हों ?

बहती अनिल अहा॥

सुधा सरोवर में मराल ज्यों,

तैरे निशिदिन, दीपथाल त्यौं,

रहें न किंचित भी उदास यों,

हों उन्मत्त महा॥

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