रे मन ! क्यों है बहक रहा ?
कौन पद्म खिल गया ? सुरभि ले,
इतना महक रहा॥
कलश भरे मद, चषक युगल हों,
हम तुम खोये रस-विह्नल हों,
कैसे मधुर मधुर वे पल हों ?
बहती अनिल अहा॥
सुधा सरोवर में मराल ज्यों,
तैरे निशिदिन, दीपथाल त्यौं,
रहें न किंचित भी उदास यों,
हों उन्मत्त महा॥
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