नयनों से, चंचला व्योम से ज्यों,
अति तीव्र गिराती सी,कामकला थी
स्वयं दृष्टिगत, जग से, होती आती सी।
यह मृदु मधुर, मृदुल भूतल को,
दिव्य पिलाती चषक युगल,
प्रकृति सुन्दरी छवि अद्भुत नव,
स्वयं दिखाती सी, पल पल॥
मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
No comments:
Post a Comment