छलना स्वयं, रूपिका चंचल,
द्रुतिगति कभी, कभी अति मंद,
भरती अति उल्लास हृदय
में विचरण करती थी सानन्द।
स्वयं 'गिरा' ही अमित मधुंरमय,
वीणा के मृदु तारों को,
छेड़ रही ज्यों, विश्व सुन रहा,
तन्मय, मृदु झंकारों को॥
मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
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