Tuesday, February 10, 2009

रूप उपवन के सबल............॥


रूप की प्यासी, युगल

आँखें तुम्हें ये, ढूँढ़ती हैं,

प्यार के संबल तुम्हें इस,

भवधरा पर खोजती हैं।

हृदय मन्दिर में बिठा कर,

साधना को पूजती हूँ॥

रूप उपवन के सबल............॥

1 comment:

Vinay said...

सुन्दर काव्य है!