रूप की प्यासी, युगल
आँखें तुम्हें ये, ढूँढ़ती हैं,
प्यार के संबल तुम्हें इस,
भवधरा पर खोजती हैं।
हृदय मन्दिर में बिठा कर,
साधना को पूजती हूँ॥
रूप उपवन के सबल............॥
मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
रूप की प्यासी, युगल
आँखें तुम्हें ये, ढूँढ़ती हैं,
प्यार के संबल तुम्हें इस,
भवधरा पर खोजती हैं।
हृदय मन्दिर में बिठा कर,
साधना को पूजती हूँ॥
रूप उपवन के सबल............॥
1 comment:
सुन्दर काव्य है!
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