मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
सुनने लगा ध्यान से फिर वह,
सोमगान से गीत मधुर,
सुनने लगा प्रकृति नारी के,
छमछम ध्वनि करते नूपुर।
कोकिल कंठी मीठी तानों में,
खोता सा जाता था,
अपने को असहाय निरूत्तर,
ठगा-ठगा सा पाता था॥
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