मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
चन्द्रप्रभा सी गगनांगन से,
धीरे-धीरे बहकी सी,
उतर रही थी सुरभि स्वर्ग की,
विश्व विपिन में, महकी सी।
करांगुली अंजुलि में मदभर,
भूपर छिड़काती, गाती,
नृत्य नूपुरों की ध्वनि मधुरिम,
गुंजित करती सी आती॥
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