Friday, February 13, 2009

रूप उपवन के सबल............॥


बुधतनय ! दासी चरणरज

चूम करके धन्य होगी,

रूप, बल की और कोई

साधना क्या अन्य होगी।

है नहीं देखा, तुम्हें प्रिय-

प्यार पथ में टोहती हूँ।

रूप उपवन के सबल............॥

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