मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
बुधतनय ! दासी चरणरज
चूम करके धन्य होगी,
रूप, बल की और कोई
साधना क्या अन्य होगी।
है नहीं देखा, तुम्हें प्रिय-
प्यार पथ में टोहती हूँ।
रूप उपवन के सबल............॥
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