मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
बज रहे हैं वीणा के तार....
मधुर हृदय हो मौन सुन रहा,
सरस मधुर झंकार।
युगल नयन किंचित अलसाये,
लगते दिन कुछ-कुछ गदराये,
बदरा नील गगन में छाये,
पड़ने लगीं फुहार........॥
Post a Comment
No comments:
Post a Comment