कंकणस्वर्ण खनकते पलपल,
वातावरण गूंजता सा,
मन मन्दिर में रूप पुजारी,
बैठा रूप पूजता सा।
हाथों में पुष्पाद्द्रजलि मधुरिम,
अर्ध्यथाल आरती लिये,
मानो उतर रही थी भू पर
'माया', नव श्रृंगार किये॥
मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
कंकणस्वर्ण खनकते पलपल,
वातावरण गूंजता सा,
मन मन्दिर में रूप पुजारी,
बैठा रूप पूजता सा।
हाथों में पुष्पाद्द्रजलि मधुरिम,
अर्ध्यथाल आरती लिये,
मानो उतर रही थी भू पर
'माया', नव श्रृंगार किये॥
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