ऋतु बसंत, माधवी गंध है,
कैसी मादक मधु-सुगंध है ?
और, मनोभव हुआ अंध हैं,
भव में बसा विकार........॥
अंग स्वयं को ऐंठ रहे हैं,
भाव, हृदय में पैठ रहे हैं,
मन ने विरह वियोग सहे हैं,
हुआ न क्यों उपकार........॥
मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
1 comment:
bahut sundar
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