गुज़र गया अब साल पुराना
नये सृजन को अब है अपनाना .
खट्टे मीठे अनुभवों के साथ
गुज़री हुयी साल को अलविदा।
आओ नए साल का स्वागत करें।
दिव्या रुद्र की कृपा सब पर बरसती रहे.
मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
गुज़र गया अब साल पुराना
नये सृजन को अब है अपनाना .
खट्टे मीठे अनुभवों के साथ
गुज़री हुयी साल को अलविदा।
आओ नए साल का स्वागत करें।
दिव्या रुद्र की कृपा सब पर बरसती रहे.
जाने कितना है लिखा, जाने कितना है कहा,
समन्दर आप में आब दुनियाँ का वहा चाँदनी
आपकी ऐ चाँद, दुनियाँ में रही है बिखर......
जिनका कोई हो नहीं...॥४॥
पचहत्तर साल हुए आप, हजारों ही साल हो कर,
करेंगे साया सदां आप हमारे सिर पर।
खुदा करे कि लगे आपको न जमानों की नजर......
जिनका कोई है नहीं अनके आप॥५॥
जिनका कोई हो नहीं, उनके आप हैं रहवर,
अकेले जो हैं चले उनके आप हैं हमसफर।
बात शायरी की हो, या कोई जिन्दगी से गिला,
बफा को बफा ने दिया हो बेवफाई का सिला।
मुहब्बत बन के वहाँ टूट पड़ते हैं अक्सर......
जिनका कोई हो नही...॥१॥
हिन्दी है सुलभ अभिव्यक्ति विचारन्ह की-
हिन्दी भाव-जान्हवी की एक पुण्य धारा है।
हिन्दी है प्रवाह एक हिन्दी है बहाव एक,
हिन्दी है लगाव जाहि जन जन प्यारा है॥
आओ हम प्रसार औ प्रचार करें पुष्ट और,
हिन्दी विश्व व्यापे आज जागे एक नारा है।
शपथ ग्रहण करें आज हिन्दी माता की,
कहें कि हमें हिन्दी और हिन्दुस्तान प्यारा है॥
भाव रस छंद राग कोष भरे अनगिन-
भारतीयता की नित्य आशा है, दिलासा है।
श्रद्धा है समूचे राष्ट्र भारत की भूरि-भूरि,
भारत विरोधियों की किन्तु यह हताशा है॥
हिन्दी हिन्दुस्तान फिल्मिस्तान ही की भाषा नाहिं,
ब्रिटिश अमेरिका दि देशन्ह की आशा है।
प्यासा हर देश हिन्दी भाषा के सरस रस,
बूंद बूंद भारती महान हिन्दी भाषा है॥२॥
हिन्दी विश्व वंदनीय, हिन्दी विश्व व्यापिनीय,
हिन्दी विश्व चिन्तनीय भाषाओं की भाषा है।
हिन्दी गेय गीत और सरस पुनीत प्रीति,
विश्व विध्न हारिणी महान अभिलाषा है॥
भाषाओं की जननि है भारतीय संस्कृति-
सभ्यता की उद्गम विनाशती निराशा है।
हिन्दी ज्योती विश्व का तिमिर नाश करे सदा,
कवि औ कवित्रियों की माधवी पिपासा है॥१॥
तुम मंदिर के द्वार खोल दो,
मैं बढ़कर आरती उतारूं,
तुम थोड़े से स्वर निखार दो,
मैं गीतों का पंथ बुहारूं।
रोम रोम में रम
जायेगा एक जो अनजाना है,
आँखों ने अन्तर प्रवेश
कर जिसको थोड़ा पहचाना है।
मृदुभावों के मधुर सलिल से,
उस महान के पैर पखारूं.....
तुम मंदिर के द्वार......॥१॥
उस अदृश्य की छवि का दर्शन
यदि इस जग को भी हो जाये,
कितना सुख धरती पर उपजे,
नव आलोक उतर कर आये।
कण कण में होती जगती के
अद्भुत सिहरन एक निहारूं.....
तुम मंदिर के द्वार......॥२॥
श्वेत कमलासनि, मनोहर,
श्वेतवसना हरि धरोहट,
सित मरालिन नित सरोवर-
में उतर डुबकी लगाऊँ.....
रस रिसा ले हाथ वीणा,
कर हृदय में क्रीड़ा,
जगत तारण हे प्रवीणा,
शरण तेरी नित्य पाऊँ.....
विकल कोई पल न हो अब,
दे पिला नव अमृत आसव,
हे जला वह ज्योति अव नव,
धर्म पथ पर पग बढ़ाऊँ.....।
आरती तेरी सजाऊँ.....
शारदे मां॥ शारदे मां....
आरती तेरी सजाऊँ।
भक्ति मंदिर में अनेकों,
दीप श्रद्धा के जलाऊँ।
आरती तेरी सजाऊँ॥
आरती.....
विश्व का कल्याण कर दे,
विश्व में चिर शान्ति भर दे,
परि जग की जननि! हर दे,
कीर्ति तेरी नित्य गाऊँ.....
तिमिर हर अज्ञान का मां,
ज्ञान का आलोक दे मां,
है अपरिमित दिव्य महिमा,
भाव कण कण में जगाऊँ.....
तुम्हें ही मैं गाता हूँ-तुम्हीं मेरा गीत हो,
तुम्हीं दिल की धड़कनों में बसा संगीत हो।
सारी ही दिशाओं में सभी ओर तुम ही तुम,
सूर्य और चंद्रमा में, तारों में बसी हो तुम।
तुम्हीं हो दुलार मेरा तुम्हीं मेरी प्रीति हो......
तुम्हें ही मैं गाता हूँ...॥१॥
तुम्ही मेरा ज्ञान हो, तुम्हीं मेरा ध्यान हो,
तुम्ही मेरी रागिनी की मधुभरी तान हो।
तुम्हीं मेरी हार हो, तुम्हीं मेरी जीत हो......
तुम्हें ही मैं गाता हूँ...॥२॥
गंध हो धरा में तुम्हीं, फूलों में सुगंध हो,
प्राण औ शरीर बीच एक अनुवन्ध हो।
तुम्हीं वर्तमान मेरा-तुम ही अतीत हो.....
तुम्हें ही मैं गाता हूँ...॥३॥
तुम्हें भोग मेरा, मुझे भोगतीं तुम्हीं सदा,
तुम्हीं ने कराया अपना मान मुझे सर्वदा।
तुम्हीं हो संयोग योग नीति हो अनीति हो......
तुम्हें ही मैं गाता हूँ...॥४॥
ओरी! अनुभूति मेरी मैं तुझे जान लूं,
दिव्य दृष्टि देदे मुझे-तुझे पहचान लूं।
तुम्हीं हो कठोर और तुम ही विनीत हो......
तुम्हें ही मैं गाता हूँ तुम्हीं मेरा गीत हो....
तुम्हीं दिल की धड़कनों में॥५॥
हे ऋषियों की तपोभूमि तेरा शत् शत् वन्दन,
तेरे कण-कण को है मेरा बारम्बार नमन्।
गंगा यमुना सरस्वती मिलि, कल कल नाद करें,
धर्म अर्थ औ काम मोक्ष-श्रुति में संवाद भरें।
सत्यम् शिवम् सुन्दर करते तुझसे परिरम्भ्ण.....
हे ऋषियों की तपोभूमि....॥१॥
देवभूमि! हैं तुझे समर्पित ऋद्धि सिद्धि औ निद्धि,
करती निर्मल सदा ज्ञान से, सकल विश्व की बुद्धि।
मनसा वाचा और कर्मणा शिव संकल्पित मन.....
हे ऋषियों की तपोभूमि....॥२॥
परम पवित्र स्वर्ग सीढ़ी, पीढ़ी-पीढ़ी पावन,
तेरी रज ऋषियों-मुनियों के माथे का
करते प्रकृति विराट् अहर्निशि तेरा अभिनंदन.....
हे ऋषियों की तपोभूमि....॥३॥
तीर्थराज, सम्राट धर्म, नगरी के दिव्य प्रयाग।
तेरी धरती पर विचरण करता स्वतंत्र अनुराग।
प्यार प्रीति बन्धुत्वभाव का है प्रतीक जन जन.....
हे ऋषियों की तपोभूमि॥॥४॥
हे महान आकर्षण जन के इष्ट सत्य के दिव्य,
तेरा रूप बसा हरि, हर, ब्रह्मा के उर में भव्य।
विकल न रहता कोई तुझ पर शान्ति करे नर्तन.....
हे ऋषियों की तपोभूमि तेरा....
धन्य श्री प्रयागराज, तीर्थराज आज
हम- करिकैं दरस तेरी महापुण्य भूमि के।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता के पुंज।
पावन भये हैं पूज्य पाद तेरे चूमि के॥
तेरी या धरा पै देवगण कविरूप धारि-
आये बार-बार देवलोक घूम घूमि के।
प्रेम,प्रीति,प्यार तेरी मेदिनी है बांटि रही-
गाये गीत प्रकृति नटी ने झूम झूमि के॥१॥
-२-
वन्दन लाख लाख बार नमन करोड़ो बार-
अगणित बार अभिनंदन सजाऐं हैं।
पुण्य कर्म होंगे करे पिछले जनम मांहि,
ता सौ या जनम बीच दर्स पर्स पाये हैं॥
कोई हैं कहीं से और कोई हैं कहीं से पूज्य-
गणर्मान्य बन्धु तेरे द्वार चले आये हैं।
माता शारदा ने निज सदन के द्वार आज-
अपने सपूत प्यार बांटिवे बुलाये हैं॥२॥
-३-
गंगा और यमुना सरस्वती लहर मारि-
हहरि हहरि जात भव्य पनघट पै।
आय वस्यौ स्वर्ग ही प्रयागराज नाम धारि-
ब्रह्मा विष्णु और महादेव की रपट पै॥
फूल-फूल, कूल-कूल, झूल-झूलि विहँसत,
शीतल सुगंध मन्द वायु सरपट पै।
साहित्यिक सम्मेलन संगम कौ नाम धारि-
संगम करत आज संगम के तट पै॥३॥