हिन्दी विश्व वंदनीय, हिन्दी विश्व व्यापिनीय,
हिन्दी विश्व चिन्तनीय भाषाओं की भाषा है।
हिन्दी गेय गीत और सरस पुनीत प्रीति,
विश्व विध्न हारिणी महान अभिलाषा है॥
भाषाओं की जननि है भारतीय संस्कृति-
सभ्यता की उद्गम विनाशती निराशा है।
हिन्दी ज्योती विश्व का तिमिर नाश करे सदा,
कवि औ कवित्रियों की माधवी पिपासा है॥१॥
1 comment:
bahut sundar...
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