श्वेत कमलासनि, मनोहर,
श्वेतवसना हरि धरोहट,
सित मरालिन नित सरोवर-
में उतर डुबकी लगाऊँ.....
रस रिसा ले हाथ वीणा,
कर हृदय में क्रीड़ा,
जगत तारण हे प्रवीणा,
शरण तेरी नित्य पाऊँ.....
विकल कोई पल न हो अब,
दे पिला नव अमृत आसव,
हे जला वह ज्योति अव नव,
धर्म पथ पर पग बढ़ाऊँ.....।
No comments:
Post a Comment