Friday, December 12, 2008

धन्य श्री प्रयागराज, तीर्थराज


धन्य श्री प्रयागराज, तीर्थराज आज

हम- करिकैं दरस तेरी महापुण्य भूमि के।

भारतीय संस्कृति और सभ्यता के पुंज।

पावन भये हैं पूज्य पाद तेरे चूमि के॥

तेरी या धरा पै देवगण कविरूप धारि-

आये बार-बार देवलोक घूम घूमि के।

प्रेम,प्रीति,प्यार तेरी मेदिनी है बांटि रही-

गाये गीत प्रकृति नटी ने झूम झूमि के॥१॥

-२-

वन्दन लाख लाख बार नमन करोड़ो बार-

अगणित बार अभिनंदन सजाऐं हैं।

पुण्य कर्म होंगे करे पिछले जनम मांहि,

ता सौ या जनम बीच दर्स पर्स पाये हैं॥

कोई हैं कहीं से और कोई हैं कहीं से पूज्य-

गणर्मान्य बन्धु तेरे द्वार चले आये हैं।

माता शारदा ने निज सदन के द्वार आज-

अपने सपूत प्यार बांटिवे बुलाये हैं॥२॥

-३-

गंगा और यमुना सरस्वती लहर मारि-

हहरि हहरि जात भव्य पनघट पै।

आय वस्यौ स्वर्ग ही प्रयागराज नाम धारि-

ब्रह्मा विष्णु और महादेव की रपट पै॥

फूल-फूल, कूल-कूल, झूल-झूलि विहँसत,

शीतल सुगंध मन्द वायु सरपट पै।

साहित्यिक सम्मेलन संगम कौ नाम धारि-

संगम करत आज संगम के तट पै॥३॥

1 comment:

vikalkavi said...

धन्यवाद