तुम्हें ही मैं गाता हूँ-तुम्हीं मेरा गीत हो,
तुम्हीं दिल की धड़कनों में बसा संगीत हो।
सारी ही दिशाओं में सभी ओर तुम ही तुम,
सूर्य और चंद्रमा में, तारों में बसी हो तुम।
तुम्हीं हो दुलार मेरा तुम्हीं मेरी प्रीति हो......
तुम्हें ही मैं गाता हूँ...॥१॥
तुम्ही मेरा ज्ञान हो, तुम्हीं मेरा ध्यान हो,
तुम्ही मेरी रागिनी की मधुभरी तान हो।
तुम्हीं मेरी हार हो, तुम्हीं मेरी जीत हो......
तुम्हें ही मैं गाता हूँ...॥२॥
गंध हो धरा में तुम्हीं, फूलों में सुगंध हो,
प्राण औ शरीर बीच एक अनुवन्ध हो।
तुम्हीं वर्तमान मेरा-तुम ही अतीत हो.....
तुम्हें ही मैं गाता हूँ...॥३॥
तुम्हें भोग मेरा, मुझे भोगतीं तुम्हीं सदा,
तुम्हीं ने कराया अपना मान मुझे सर्वदा।
तुम्हीं हो संयोग योग नीति हो अनीति हो......
तुम्हें ही मैं गाता हूँ...॥४॥
ओरी! अनुभूति मेरी मैं तुझे जान लूं,
दिव्य दृष्टि देदे मुझे-तुझे पहचान लूं।
तुम्हीं हो कठोर और तुम ही विनीत हो......
तुम्हें ही मैं गाता हूँ तुम्हीं मेरा गीत हो....
तुम्हीं दिल की धड़कनों में॥५॥
1 comment:
anubhav ko anubhooti bana diya hai apne
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