Friday, January 16, 2009

अवर्णनीय आभा थी, अति ही मधुर, मधुरतम॥


प्रतिबिम्बित रत्नों में, होते अधर, विकम्पित,

मुक्ता शुभ्र दशनरद, शोभित अतिशय अद्भुत।

दीर्घ, नितम्बस्पर्शी, अलकावलि अति अनुपम,

अवर्णनीय आभा थी, अति ही मधुर, मधुरतम॥

झील सदृष्य नयन नीले, नभवर्णी, मनहर,

होठों की छवि देख, उषा होती छूमंतर।

अर्धचन्द्र युग भ्रू कटाक्ष से, आहत करती,

देतीं त्रास सुरों असुरों को, इत, उत फिरती॥

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