Monday, January 26, 2009

तिमिरघटा सी घिर लहरातीं, अलकें युगल नितम्बों पर,


तिमिरघटा सी घिर लहरातीं, अलकें युगल नितम्बों पर,

कदली जंघाओं पर यौवन वपु, ज्यों पुष्ट स्तम्भों पर।

शंखग्रीवा युगल स्कन्धों पर गौरव ज्यों उठी हुई,

वेणी कृष्ण सर्पिणी मानो, अरिसन्मुख हो डटी हुई॥

भालप्रभा विद्युत ज्यों नभ में, इत उत कीड़ा करती सी,

नीलांगन में तारावलियों के, मन मधु से भरती सी।

कुम्भस्तनी युगल पट कंचुकि, किंचित बंधन ढिला-ढिला,

यौवन, पूर्ण इन्दु मुख दिखता, पंकज सर में खिलाखिला॥

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