Sunday, January 25, 2009

शुक नासिका सुरम्य, दिव्य मुक्तामय सुन्दर,


शुक नासिका सुरम्य, दिव्य मुक्तामय सुन्दर,

चिबुक, कपोलों पर, तिल, कृष्ण, कान्ति अतिमनहर।

कदली जंघा युगल, स्तंभों सी, दिपतीं सी,

मानो शोभा स्वयं, धरापर थी, उतरी सी॥

धवल कान्ति सी, सबल क्रान्ति सी, विपुल भ्राँति सी मनोरमा,

नवल शान्ति सी शशि ज्योत्स्निा, उपमामयी स्वयं उपमा।

कर्पूरी सुगंध सौरभमय, स्वर्गलोक में सरसाती,

कौन अरी अनजान ? विपिन निर्जन में फिरती इठलाती॥

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