इन्द्रिजीत है कौन, ढूंढ़ती स्वर्ग धरा पर,
दिव्य दृष्टि संतृषित, घूमती वसुन्धरा पर।
युगल, सुमेरुउरोज दिव्य, उठते, गिरते से,
श्वासों के संघर्षमध्य नभ से घिरते से॥
केसर लिप्त पयोधर, सौरभ मृदु सुगंधमय,
किसको ढूंढ़ रहे धरती पर, होकर तन्मय ?
उदर त्रिावलिसरिता सी, शोभन, अद्भुत, अनुपम,
देतीं प्रणय निमत्राण किसको अहां मधुरतम ?
मन मतङ्ग सा झूम-झूम कर, किसे ढूँढ़ता ?
किस उलझन में फँसी हृदय की निरी मूढ़ता।
No comments:
Post a Comment