Tuesday, January 27, 2009

शोडष कला निखर आईंसी,


शोडष कला निखर आईंसी,

उभरी उभरी, सीने पर,

हो जाते उन्मत्त मधुप थे,

मधु कलियों का पीने पर।

सुराकलश पर धरे चषक थे,

पीने वाले डरते से,

मात्रा नयन द्वारो से उर की

प्यास, ठगे से, भरते से॥

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