मां सरस्वती की सेवा में रत साधक का एक सद्प्रयास
बोली हे बहिन! सुनो तो,
पहिचानो मुझे दृष्टि से।
नारी की हृदय सदयता,
क्यों पृथक हुई सृष्टि से?
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