कूपनाभि, दृष्टव्य, वस्त्रा-कंचुकि, किंचित सा,
उदर, दीप्त, मदजल से, होता था, सिंचित सा।
विद्युतप्रभा दृष्ट होती, ज्यों नभ में, अविरल,
देहयष्टि अति रम्य, भव्य, आभासित पल-पल॥
कनक कर्द्धनी मुक्तामय, कटि किंचित कसती,
उतर स्वर्ग से चली धरा पर, वन्हि बरसती।
रेशमपट, परिधानपीत, तन पर अति शोभित,
अंग-अंग प्रत्यंग, पारदर्शी तारांकित॥
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