गालों पर गुलाब अर्पित थे, भव्य छटामय,
शोभा अमित ललाम, दिव्य नित नव्य कलामय।
कनक वलय केयूर भुजाओं में अति शोभित,
मणिमुंदरी में, मनके होते भाव तिरोहित॥
शंखग्रीवा, चित्ताकर्षण हेतु सुरों के,
मन मंथन करती सी, धरती पर असुरों के।
पुष्पखचित युग वेणि, सर्पिणी ज्यों, लहराती,
कामीजन, काःपुरुषों के मन को डस जातीं॥
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