Wednesday, April 15, 2009

आ गई मैं, प्रियतम ! इस पार....


आ गई मैं, प्रियतम ! इस पार....

करो तनिक सन्मुख हो प्यासे,

मन से मधु मनुहार।

मेरी व्यथा कथा कुछ सुन लो,

अगर हो सके तो कुछ गुन लो,

मन के भाव जाल में बुन लो,

मेरी करूण पुकार.............॥

Sunday, April 12, 2009

रे मन ! क्यों है बहक रहा ?


छम छम करतीं पायल बाजें,

मन में परमानन्द विराजे,

कोयल की मृदु कुहूकुहू में,

नव, मकरन्द बहा,

रे मन ! क्यों है बहक रहा ?

Sunday, March 29, 2009

देवभूमि कहलायी जाती, ......


जिस धरती की रज का करते,

तिलक देवता आ आकर।

देवभूमि कहलायी जाती,

पावन परम्‌ दुग्धशाला॥

देव भूमि पर स्वाहा स्वाहा-

यज्ञानल बोला करती।

हाय-हाय की करूण कहानी-

कहने आयी वधशाला॥४॥

Wednesday, March 11, 2009

थिरक थिरक नूपुर पग, बाजें,.....


थिरक थिरक नूपुर पग, बाजें,

साजें मेघ, गगन, घन गाजें,

परिरम्भित हो भू पर राजेंयह मृदु स्वप्न रहा॥

धिकधिक ताक धिनाधिक, धिनधिन,

होता सा मन में नित नर्तन,सरगम,

सप्त सुरी-अभिनन्दन,करती रहे अहा॥

Sunday, March 8, 2009

रे मन ! क्यों है बहक रहा ?


रे मन ! क्यों है बहक रहा ?

कौन पद्म खिल गया ? सुरभि ले,

इतना महक रहा॥

कलश भरे मद, चषक युगल हों,

हम तुम खोये रस-विह्नल हों,

कैसे मधुर मधुर वे पल हों ?

बहती अनिल अहा॥

सुधा सरोवर में मराल ज्यों,

तैरे निशिदिन, दीपथाल त्यौं,

रहें न किंचित भी उदास यों,

हों उन्मत्त महा॥

Thursday, March 5, 2009

वीणे ! वक्षस्थल पर सोजा,


वीणे ! वक्षस्थल पर सोजा,

दूखे मन ! किंचित सा रो जा,

आ, तू भी कुछ ऐसा हो जा,

जैसा है संसार.........॥

कहीं मिलेगा आश्रय अपना,

वहीं जगेगा, सोया सपना,

यदि कोई, जो होगा अपना,

कर लेगा मनुहारबज रहे हैं, वीणा के तार॥

Sunday, February 22, 2009

ऋतु बसंत, माधवी गंध है,कैसी मादक मधु-सुगंध है


ऋतु बसंत, माधवी गंध है,

कैसी मादक मधु-सुगंध है ?

और, मनोभव हुआ अंध हैं,

भव में बसा विकार........॥

अंग स्वयं को ऐंठ रहे हैं,

भाव, हृदय में पैठ रहे हैं,

मन ने विरह वियोग सहे हैं,

हुआ न क्यों उपकार........॥

Friday, February 20, 2009

बज रहे हैं वीणा के तार....


बज रहे हैं वीणा के तार....

मधुर हृदय हो मौन सुन रहा,

सरस मधुर झंकार।

युगल नयन किंचित अलसाये,

लगते दिन कुछ-कुछ गदराये,

बदरा नील गगन में छाये,

पड़ने लगीं फुहार........॥

Thursday, February 19, 2009

रूप उपवन के सबल............


साधना तो सफल होती है, सफल होती रहेगी,

प्यार की सरिता हृदय में प्यार भर, बहती रहेगी।

प्यार का अवलम्ब पाने, प्यार, फिरती मोहती हूँ।

रूप उपवन के सबल............॥

Friday, February 13, 2009

रूप उपवन के सबल............॥


बुधतनय ! दासी चरणरज

चूम करके धन्य होगी,

रूप, बल की और कोई

साधना क्या अन्य होगी।

है नहीं देखा, तुम्हें प्रिय-

प्यार पथ में टोहती हूँ।

रूप उपवन के सबल............॥

Thursday, February 12, 2009

मैं स्वयं सरिता, मगर है प्यास,


मैं स्वयं सरिता, मगर है प्यास,

नित बेचैन करती,

स्वाति की ही बूंद चातक की,

तृषा है नित्य हरती।

नित तुम्हारे मिलन के ही,

स्वप्न में पथ जोहती हूँ।

रूप उपवन के सबल............॥

Tuesday, February 10, 2009

रूप उपवन के सबल............॥


रूप की प्यासी, युगल

आँखें तुम्हें ये, ढूँढ़ती हैं,

प्यार के संबल तुम्हें इस,

भवधरा पर खोजती हैं।

हृदय मन्दिर में बिठा कर,

साधना को पूजती हूँ॥

रूप उपवन के सबल............॥

Sunday, February 8, 2009

रूप उपवन के सबल माली कहाँ ?


रूप उपवन के सबल माली कहाँ ?

मैं खोजती हूँ.........

देव ऋषि नारद बखाना रूप,

मैं उन्मत हुई सी,लोभ

कर पाई नहीं संवरण,

छाई बेवसी सी।

त्याग सब कुछ,

आज अपना, पन,

विभव में खोजती हूँ॥

Saturday, February 7, 2009

छमछम ध्वनि करते नूपुर।

सुनने लगा ध्यान से फिर वह,

सोमगान से गीत मधुर,

सुनने लगा प्रकृति नारी के,

छमछम ध्वनि करते नूपुर।

कोकिल कंठी मीठी तानों में,

खोता सा जाता था,

अपने को असहाय निरूत्तर,

ठगा-ठगा सा पाता था॥

Friday, February 6, 2009

खोज रही वरमाला थामे युगलकरों में, प्रियतम को,


खोज रही वरमाला थामे

युगलकरों में, प्रियतम को,

खोज रही थी विश्व विजन में,

दुबके रत्न मधुरतम को।

चपल दृष्टि जिस ओर उठ गई,

उधर मच गया सा हड़कम्प,

काम स्वयं, भूतल पर आया,

कौतुक देखा, हुआ विकम्प॥

Wednesday, February 4, 2009

छलना स्वयं, रूपिका चंचल,........


छलना स्वयं, रूपिका चंचल,

द्रुतिगति कभी, कभी अति मंद,

भरती अति उल्लास हृदय

में विचरण करती थी सानन्द।

स्वयं 'गिरा' ही अमित मधुंरमय,

वीणा के मृदु तारों को,

छेड़ रही ज्यों, विश्व सुन रहा,

तन्मय, मृदु झंकारों को॥

Tuesday, February 3, 2009

नयनों से, चंचला व्योम से ज्यों,


नयनों से, चंचला व्योम से ज्यों,

अति तीव्र गिराती सी,कामकला थी

स्वयं दृष्टिगत, जग से, होती आती सी।

यह मृदु मधुर, मृदुल भूतल को,

दिव्य पिलाती चषक युगल,

प्रकृति सुन्दरी छवि अद्भुत नव,

स्वयं दिखाती सी, पल पल॥

Sunday, February 1, 2009

चन्द्रप्रभा सी गगनांगन से,


चन्द्रप्रभा सी गगनांगन से,

धीरे-धीरे बहकी सी,

उतर रही थी सुरभि स्वर्ग की,

विश्व विपिन में, महकी सी।

करांगुली अंजुलि में मदभर,

भूपर छिड़काती, गाती,

नृत्य नूपुरों की ध्वनि मधुरिम,

गुंजित करती सी आती॥

Thursday, January 29, 2009

मन मन्दिर में रूप पुजारी,



कंकणस्वर्ण खनकते पलपल,

वातावरण गूंजता सा,

मन मन्दिर में रूप पुजारी,

बैठा रूप पूजता सा।

हाथों में पुष्पाद्द्रजलि मधुरिम,

अर्ध्यथाल आरती लिये,

मानो उतर रही थी भू पर

'माया', नव श्रृंगार किये॥

Tuesday, January 27, 2009

शोडष कला निखर आईंसी,


शोडष कला निखर आईंसी,

उभरी उभरी, सीने पर,

हो जाते उन्मत्त मधुप थे,

मधु कलियों का पीने पर।

सुराकलश पर धरे चषक थे,

पीने वाले डरते से,

मात्रा नयन द्वारो से उर की

प्यास, ठगे से, भरते से॥

Monday, January 26, 2009

तिमिरघटा सी घिर लहरातीं, अलकें युगल नितम्बों पर,


तिमिरघटा सी घिर लहरातीं, अलकें युगल नितम्बों पर,

कदली जंघाओं पर यौवन वपु, ज्यों पुष्ट स्तम्भों पर।

शंखग्रीवा युगल स्कन्धों पर गौरव ज्यों उठी हुई,

वेणी कृष्ण सर्पिणी मानो, अरिसन्मुख हो डटी हुई॥

भालप्रभा विद्युत ज्यों नभ में, इत उत कीड़ा करती सी,

नीलांगन में तारावलियों के, मन मधु से भरती सी।

कुम्भस्तनी युगल पट कंचुकि, किंचित बंधन ढिला-ढिला,

यौवन, पूर्ण इन्दु मुख दिखता, पंकज सर में खिलाखिला॥

Sunday, January 25, 2009

शुक नासिका सुरम्य, दिव्य मुक्तामय सुन्दर,


शुक नासिका सुरम्य, दिव्य मुक्तामय सुन्दर,

चिबुक, कपोलों पर, तिल, कृष्ण, कान्ति अतिमनहर।

कदली जंघा युगल, स्तंभों सी, दिपतीं सी,

मानो शोभा स्वयं, धरापर थी, उतरी सी॥

धवल कान्ति सी, सबल क्रान्ति सी, विपुल भ्राँति सी मनोरमा,

नवल शान्ति सी शशि ज्योत्स्निा, उपमामयी स्वयं उपमा।

कर्पूरी सुगंध सौरभमय, स्वर्गलोक में सरसाती,

कौन अरी अनजान ? विपिन निर्जन में फिरती इठलाती॥

Monday, January 19, 2009

कूपनाभि, दृष्टव्य, वस्त्रा-कंचुकि, किंचित सा,

कूपनाभि, दृष्टव्य, वस्त्रा-कंचुकि, किंचित सा,
उदर, दीप्त, मदजल से, होता था, सिंचित सा।
विद्युतप्रभा दृष्ट होती, ज्यों नभ में, अविरल,
देहयष्टि अति रम्य, भव्य, आभासित पल-पल॥
कनक कर्द्धनी मुक्तामय, कटि किंचित कसती,
उतर स्वर्ग से चली धरा पर, वन्हि बरसती।
रेशमपट, परिधानपीत, तन पर अति शोभित,
अंग-अंग प्रत्यंग, पारदर्शी तारांकित॥

Sunday, January 18, 2009

मन मतङ्ग सा झूम-झूम कर, किसे ढूँढ़ता ?


इन्द्रिजीत है कौन, ढूंढ़ती स्वर्ग धरा पर,

दिव्य दृष्टि संतृषित, घूमती वसुन्धरा पर।

युगल, सुमेरुउरोज दिव्य, उठते, गिरते से,

श्वासों के संघर्षमध्य नभ से घिरते से॥

केसर लिप्त पयोधर, सौरभ मृदु सुगंधमय,

किसको ढूंढ़ रहे धरती पर, होकर तन्मय ?

उदर त्रिावलिसरिता सी, शोभन, अद्भुत, अनुपम,

देतीं प्रणय निमत्राण किसको अहां मधुरतम ?

मन मतङ्ग सा झूम-झूम कर, किसे ढूँढ़ता ?

किस उलझन में फँसी हृदय की निरी मूढ़ता।

Saturday, January 17, 2009

मणिमुंदरी में, मनके होते भाव तिरोहित॥


गालों पर गुलाब अर्पित थे, भव्य छटामय,

शोभा अमित ललाम, दिव्य नित नव्य कलामय।

कनक वलय केयूर भुजाओं में अति शोभित,

मणिमुंदरी में, मनके होते भाव तिरोहित॥

शंखग्रीवा, चित्ताकर्षण हेतु सुरों के,

मन मंथन करती सी, धरती पर असुरों के।

पुष्पखचित युग वेणि, सर्पिणी ज्यों, लहराती,

कामीजन, काःपुरुषों के मन को डस जातीं॥

Friday, January 16, 2009

अवर्णनीय आभा थी, अति ही मधुर, मधुरतम॥


प्रतिबिम्बित रत्नों में, होते अधर, विकम्पित,

मुक्ता शुभ्र दशनरद, शोभित अतिशय अद्भुत।

दीर्घ, नितम्बस्पर्शी, अलकावलि अति अनुपम,

अवर्णनीय आभा थी, अति ही मधुर, मधुरतम॥

झील सदृष्य नयन नीले, नभवर्णी, मनहर,

होठों की छवि देख, उषा होती छूमंतर।

अर्धचन्द्र युग भ्रू कटाक्ष से, आहत करती,

देतीं त्रास सुरों असुरों को, इत, उत फिरती॥

Thursday, January 15, 2009

परम्‌ प्रफुल्लित, रूपराशि, रूपसि छाया सी,


परम्‌ प्रफुल्लित, रूपराशि, रूपसि छाया सी,

विचरण करती स्वर्ग बीच, कंचन काया सी।

शोभित स्वर्ग नित्य था, पाकर ऐसी निधि को,

स्वयं प्रकाशित, रति रजनी विधु ज्यों जलनिधि को॥

युगल, भव्य भ्रूचाप सघन, श्ुाचि इन्द्रधनुष से-

दिपते व्योम बदन मस्तक पर कठिन कुलिश से।

श्यामघटा ज्यों केशराशि, विधुमुख मण्डल पर,

शोभित थीं मणिमाल भव्य अति, वक्षस्थल पर॥

Monday, January 12, 2009

गीत निस्वार्थ भावना के।


पीता जाउं गाता जाउं

गीत निस्वार्थ भावना के।

जलें निरंतर दी हृदय में

परहित सरस कामना के॥

Friday, January 9, 2009

क्यों पृथक हुई सृष्टि से?


बोली हे बहिन! सुनो तो,

पहिचानो मुझे दृष्टि से।

नारी की हृदय सदयता,

क्यों पृथक हुई सृष्टि से?

इस आतंकवाद ने सबको दुखी बनाया है।

इस आतंकवाद ने सबको दुखी बनाया है।

भारत हो चाहे अमरीका इसने ही तो रुलाया है॥

विश्व शांति की राह को क्यों है दुश्मन ने मोड़ा।

इस भारत को ही फिर क्यों खुद्ध क्षेत्र बनाकर छोड़॥

सभी भारतवासी फिर से एक हो जाएं, नींद टूटे।

दुश्मन की किस्मत फिर भारत के हाथों फूटे॥

प्रस्तुति : राज कुमार बघेल

Tuesday, January 6, 2009

भारत का पावन यश भर दें।


कर चूर इरादे दुश्मन के,

भारत के वीर सिपाही दें,

दुनियाँ के कोने कोने में,

भारत का पावन यश भर दें।

जग करे नमन-तुझे, मेरे वतन।

इतिहास जगत नित कहता रहे.....

सावन में चमन, फागुन में सुमन....॥

Sunday, January 4, 2009

भारतमाता हो नित गर्वित।


हिम मुकुट शीश पर धारण कर

सिर ऊँचा रखे हिमालय नित,

लहराता रहे परचम नभ में,

भारतमाता हो नित गर्वित

नाचे आंगन, कर आलिंगन-

संसार कथा नित कहता रहे.....

Saturday, January 3, 2009

बरसें धरती पर रँग न्यारे।


आबाद प्रीति की रीति रहे

आबाद प्यार के पथ सारे,

जीवन हो सरस सभी हरषें

बरसें धरती पर रँग न्यारे।

सुरभित कण कण,

विहँसे क्षण क्षण- यह

अमृत कलश रस रिसता रहे.....

Friday, January 2, 2009

यह भव्य भवन नित सजता रहे.....


चंचल नदियाँ ला अमृत जल,

जन जन की प्यास बुझती रहें,

से शीतल मंद सुगंध हवा,

तन तन की तपन नित हरती रहें।

कण कण में अमन-प्रमुदित तन मन-

यह भव्य भवन नित सजता रहे.....

Thursday, January 1, 2009

हर ऋतु में वतन मेरा महका रहे.....


सावन में चमन, फागुन में सुमन,

हर ऋतु में वतन मेरा महका रहे.....

इसकी झिलमिल करतीं सोने

चांदी की मोती की फसलें,

गद् गद् हो जाये मन मेरा

जब सूर्य चंद्र नभ में निकलें।

टिम टिम करते तारे अनगिन

भर गोद, गगन नित हँसता रहे.....